Name any two dialects counted under Middle-Eastern Rajasthani or Dhundhadi

Name any two dialects counted under Middle-Eastern Rajasthani or Dhundhadi. मध्य-पूर्वी राजस्थानी अथवा ढूंढाड़ी के अन्तर्गत सम्मिलित किन्हीं दो बोलियों के नाम लिखिए ।

मध्यपूर्वी (या पूर्वी) राजस्थानी (ढूँढाडी हाड़ौती), के अन्तर्गत सम्मिलित किन्हीं दो बोलियों के नाम

  1. Mewati
  2. Ahirwati

Dhundhari (ढूंढाड़ी), also known as Jaipuri, is a Rajasthani language within the Indo-Aryan language family. It is spoken in the Dhundhar region of northeastern Rajasthan found in four districts – Jaipur, Sawai Madhopur, Dausa, Tonk and some parts of Sikar, Karauli and Gangapur District.

Dhundhari is primarily spoken in the state of Rajasthan. Mewati is another dialect of Rajasthani to the northeast, which assumes the form of Braja Bhasha in Bharatpur. Mewati is actually the language of the former Mewat; the abode of the Meos in Dang is a further sub-dialect of Braja Bhasa in Karauli and that of Bundeli and Malvi in Jhalawar and the southern parts of Kota.

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Similarly, Ahirwati (also known as Hirwati) belongs to the Rajasthani language group and is commonly taken to be a dialect of Haryanvi. It is spoken in Ahirwal region the abode of Ahirs/Heers Behror, Mundawar, Tijara, Bansur (in the district of Alwar, Rajasthan), Kotputli in Jaipur district.

राजस्थान की क्षेत्रीय बोलियाँ

पश्चिमी राजस्थानी – मारवाड़ी, मेवाड़ी, बागड़ी, शेखावाटी।

पूर्वी राजस्थानी – ढूंढाड़ी, हाड़ौती, मेवाती, अहीरवाटी(राठी)

भारत की अन्य प्रांतीय भाषाओं की तरह राजस्थानी की भी अपनी कुछ विशिष्ट विशेषतायें हैं। ग्रियर्सन ने राजस्थानी भाषा की बोलियों का वर्गीकरण इस प्रकार किया है:

1. पश्चिमी राजस्थानी – इसमें मारवाड़ी, थली, बीकानेरी, बागड़ी, शेखावाटी, मेवाड़ी, खैराड़ी, गोडवाड़ी और देवड़ावाटी सम्मिलित हैं।

2. उत्तर पूर्वी राजस्थानी – अहीरवाटी और मेवाती।

3. ढूंढाड़ी – इसे मध्यपूर्वी राजस्थानी भी कहा जाता है, जिसमें तोंरावाटी, जयपुरी, कठैड़ी, राजावाटी, अजमेरी, किशनगढ़ी, शाहपुरी एवं हाडौती सम्मिलित हैं।

4. मालवी या दक्षिण-पूर्वी-राजस्थानी – इसमें रांगड़ी और सोडवाडी हैं।

5. दक्षिणी राजस्थानी – निमाड़ी । मेवाड़ी

प्राचीन काल में इसका नाम मरुभाषा ही था। कालान्तर में यह डिंगळ कहलाने लगी। इसी नामकरण के समय राजस्थानी में समृद्धतम साहित्य की रचना हुई। आधुनिक समय में मोटे तौर से इसे राजस्थानी ही कहा जाता है। अतः राजस्थानी से हमारा अभिप्राय उसी परंपरागत मरु एवं डिंगळ भाषा से है।

  • कविराजा सूर्यमल्ल ने वंशभास्कर में स्थान-स्थान पर इस नाम का प्रयोग किया है।
  • विश्व का सबसे बड़ा शब्दकोश डॉ. सीताराम लालस द्वारा रचित राजस्थानी भाषा (राजस्थानी हिंदी वृहद कोश) वृहद शब्दकोश है। इसमें 2 लाख से अधिक शब्द है।

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